बद्री गाय की नामकरण बहुत ही दिलचस्प है। यह गाय उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाती है और इसका नाम हिमालय में स्थित प्रसिद्ध चार धामों में से एक बद्रीनाथ धाम के पवित्र मंदिर से लिया गया है। इसे पहले ‘पहाड़ी’ गाय के नाम से जाना जाता था।
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छोटी मगर मजबूत गाय
बद्री गाय आकार में छोटी होती है, लेकिन इसकी टांगें लंबी और मजबूत होती हैं। इनका रंग काला, भूरा, लाल, सफेद और ग्रे जैसा विविध हो सकता है। ये गायें जहरीले प्रदूषण, पॉलीथीन और मैदानी इलाकों की गायों को होने वाली अन्य हानिकारक चीजों से दूर रहती हैं।
औषधीय जड़ी बूटियों से भरपूर दूध
बद्री गायें पहाड़ों में सिर्फ जड़ी-बूटियां और झाड़ियां चरती हैं, जिससे इनके दूध में औषधीय गुण पाए जाते हैं और इसकी जैविक गुणवत्ता भी बहुत अधिक होती है।
विशेष महत्व और संरक्षण के प्रयास
उत्तराखंड की इस गाय को राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो द्वारा बद्री नस्ल के रूप में मान्यता मिलने के बाद यह उत्तराखंड की पहली प्रमाणित गाय नस्ल बन गई। बद्री गाय का घी बाज़ार में 5500 रुपये किलो तक बिकता है, जबकि अन्य भारतीय गायों के दूध का घी 1000 से 1500 रुपये किलो से ज्यादा नहीं बिकता। दुर्भाग्य से, कम दूध उत्पादन के कारण ज्यादातर पशुपालक इन्हें पालना पसंद नहीं करते हैं। इस वजह से बद्री गायों की संख्या कम हो रही है। इनके संरक्षण के लिए चम्पावत जिले के नारियल गांव में पशुपालन प्रजनन केंद्र में कार्य किया जा रहा है।
विश्व का सबसे फायदेमंद दूध?
2017 में यूकोस्ट (उत्तराखंड राज्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद) और आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध में पाया गया कि बद्री गाय का दूध दुनिया का सबसे फायदेमंद और रोगमुक्त दूध है। शोध में यह भी पता चला कि बद्री गाय के दूध में 90 प्रतिशत A-2 जीनोटाइप बीटा कैसिइन होता है, जो मधुमेह और हृदय रोगों को रोकने में कारगर है।
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पहचान और विशेषताएं
- ये गायें 1200 से 2200 मीटर की ऊंचाई पर रह सकती हैं।
- ये पहाड़ी क्षेत्रों में आसानी से रह सकती हैं।
- इनका रंग काला, भूरा, भूरा या सफेद हो सकता है।
- इनके सींग घुमावदार होते हैं।
- शरीर का आकार छोटा होता है, माथा सीधा होता है, बीच में कूबड़ होता है और थन छोटा और शरीर से चिपका होता है।
- एक लैक्टेशन में लगभग 632 लीटर दूध देती है।
- दूध में 4 प्रतिशत वसा पाई जाती है।