दूधारु पशुओ के लिए काजू -बादाम का काम करती है पौष्टिक चारा बाल्टियां भरकर देने लगेगी दूध

By Ankush Barskar

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दूधारु पशुओ के लिए काजू -बादाम का काम करती है पौष्टिक चारा बाल्टियां भरकर देने लगेगी दूध

पशुओं के लिए चारे की लगातार बढ़ती मांग को देखते हुए केंद्रीय घास अनुसंधान संस्थान (ग्रासलैंड) के वैज्ञानिकों ने नई किस्मों को विकसित किया है, जो मवेशियों की दूध उत्पादन क्षमता को बढ़ाती हैं। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश का बुंदेलखंड क्षेत्र चारा फसलों के उत्पादन के लिए अनुकूल है। ऐसे में ग्रासलैंड के वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र में लगातार berseem और जई की किस्मों में सुधार किया है और अब तक मवेशियों के लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद किस्मों को विकसित किया है। परीक्षण चरण के बाद, इन किस्मों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उपयोग के लिए उपलब्ध करा दिया गया है। इनके गुणों के कारण, इन प्रजातियों की मांग न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी लगातार बढ़ रही है।

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दूध में SNF की मात्रा में वृद्धि

ग्रासलैंड की बीज उत्पादन इकाई के नोडल अधिकारी डॉ. राजीव अग्रवाल का हवाला देते हुए संस्थान ने बताया कि पशुपालक आमतौर पर अपने मवेशियों को berseem और जई की देशी किस्मों को खिलाते हैं। संस्थान ने अब इन दोनों चαρों की संकर किस्में विकसित की हैं। ये किस्में डेयरी पशुओं के लिए ऊर्जा वर्धक साबित हुई हैं।

इनके सेवन से मवेशियों के दूध में सॉलिड नॉट फैट (SNF) का स्तर अधिक पाया गया है। उच्च SNF वाला दूध सामान्य दूध की तुलना में अधिक मात्रा में खोया और घी का उत्पादन करता है। इसलिए यह चारा न केवल मवेशियों के लिए बल्कि पशुपालकों और डेयरी व्यापारियों के लिए भी फायदेमंद साबित हो रहा है।

डॉ अग्रवाल ने बताया कि इसका इस्तेमाल ग्रासलैंड के चरागाह में पाले गए 140 भदावरी नस्ल की भैंसों पर किया गया। इसमें पाया गया कि संकर berseem और जई खाने वाली भैंसों में वसा की मात्रा सामान्य चारा खाने वाली भैंसों की तुलना में 8 प्रतिशत अधिक थी। इसके बाद किसानों को प्रयोग के लिए संकर berseem और जई दी गई। उत्साहजनक परिणाम मिलने के बाद, अब बड़ी कंपनियों ने ग्रासलैंड से संकर berseem और जई के बीज खरीदने के लिए समझौता किया है।

बुंदेलखंड का चारा पहुंचेगा इन देशों में

ग्रासलैंड ने कहा कि पशुपालकों और डेयरी व्यापारियों के बीच संकर berseem और जई की मांग लगातार बढ़ रही है। इसमें विदेशों से मांग को देखते हुए कुछ कंपनियों ने संस्थान के साथ बीज आपूर्ति समझौता किया है। इसके अंतर्गत गुजरात की आलमदार सीड्स कंपनी और हैदराबाद की फॉरेन सीड्स कंपनी शामिल हैं।

ये कंपनियां ग्रासलैंड से बीज खरीदेंगी और अपने खेतों में उनके पौधे तैयार करेंगी और अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, फिनलैंड और तुर्की सहित अन्य देशों को आपूर्ति करेंगी। समझौते के अनुसार, कंपनियां अपने पैकेजिंग पर कंपनी के नाम के साथ ग्रासलैंड, झांसी का भी उल्लेख करेंगी। विदेशों में आपूर्ति के लिए कंपनियों ने इस चारा बीज को सरकार की कीमत से 20 प्रतिशत अधिक मूल्य पर ग्रासलैंड से खरीदा है।

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इन प्रजातियों को विकसित करने वाले वैज्ञानिकों का दावा है कि इस चारे के प्रभाव से डेयरी मवेशियों की ब्याने की क्षमता यानी फर्टिलिटी में भी वृद्धि हुई है। कुल मिलाकर यह पशुपालकों के लिए एक लाभदायक सौदा है, साथ ही पशुओं के स्वास्थ्य के लिए भी फाय

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