बरसात के दिनों में गंदगी की वजह से कई तरह की बीमारियां फैलती हैं. इनमें सबसे ज्यादा असर पशुओं पर पड़ता है. उन्हीं में से एक है पीपीआर रोग, जो बकरियों को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है. पीपीआर का पूरा नाम पेस्ट डेस पेटीट्स रुमिनेंट (Peste des Petits Ruminants) होता है. इसे आम भाषा में बकरी खूंख या बकरी प्लेग भी कहते हैं.
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यह एक तरह का संक्रामक रोग है, जो एक बकरी से दूसरी बकरी में फैलता है. इससे पीड़ित बकरियां मर भी सकती हैं. इसलिए बरसात के मौसम में बकरियों को साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए.
पीपीआर रोग – लक्षण और बचाव
पशु विशेषज्ञों के मुताबिक पीपीआर एक विषाणु जनित (viral) और संक्रामक रोग है. यह (paramyxovirus) परिवार से संबंधित है. यह रोग छूत के कारण एक बकरी से दूसरी बकक्रियों में फैलता है. कभी-कभी अन्य मवेश और जंगली जानवर भी इस बीमारी की चपेट में आ जाते हैं. जानकारों का कहना है कि इस रोग से ग्रसित 50 से 80 फीसदी बकरियां मर जाती हैं. वहीं, गंभीर परिस्थिति में मृत्यु दर 100% तक भी पहुंच सकती है.यानी अगर आपके बाड़े में कोई एक बकरी भी इस रोग से ग्रस्त है, तो धीरे-धीरे यह सभी पशुओं में फैल सकती है और उनकी जान का खतरा रहता है.
कैसे फैलता है पीपीआर रोग?
यह रोग छींक के जरिए फैलता है. बीमार पशु के आंख, नाक, लार और मल में पीपीआर वायरस पाया जाता है. यह वायरस तेजी से हवा में फैलता है, जब बीमार पशु छींकता या खांसता है. खास बात यह है कि पीपीआर वायरस परिवहन, गर्भावस्था या अन्य बीमारियों जैसी स्थिति के कारण भी हो सकता है. ऐसा कहा जाता है कि यह वायरस भेड़ों और बछियों को ज्यादा प्रभावित करता है. इनमें भी 4 माह से एक साल की उम्र के मेमने और बकरियां पीपीआर रोग की ज्यादा चपेट में आती हैं.
पीपीआर रोग के लक्षण
इस रोग से ग्रसित मवेशों को बहुत तेज बुखार आता है. साथ ही मुंह, जीभ, होंठ, तालू और मसूड़ों के अंदर छाले हो जाते हैं. इसके अलावा खुरों में भी छाले पड़ जाते हैं. इस रोग से पीड़ित मवेश ज्यादा प drool करते हैं. संक्रमित बकरियों को भूख कम लगती है. साथ ही कम जुगाली करती हैं. धीरे-धीरे कमजोर हो जाती हैं. वहीं, गर्भवती बकरियों को इस रोग से गर्भपात का खतरा रहता है.
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पीपीआर रोग का बचाव
पशु विशेषज्ञों का कहना है कि चूंकि पीपीआर एक विषाणु जनित रोग है, इसलिए इसका कोई खास इलाज नहीं है. लेकिन दवाओं के इस्तेमाल से मवेशों की मृत्यु दर को कम किया जा सकता है.
सबसे पहले, पीपीआर से संक्रमित बकरियों को बाड़े से अलग रखना चाहिए ताकि संक्रमण दूसरों में न फैले. साथ ही संक्रमण रोकने के लिए डॉक्टर की सलाह पर एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल करना चाहिए. कान, नाक, आंखों के पास के घावों को दिन में दो से तीन बार रुई से साफ करना चाहिए. बीमार बकरियों को ताजा, मुलायम और पौष्टिक चारा खिलाना चाहिए.
अगर किसान चाहते हैं तो बकरियों का टीकाकरण भी करवा सकते हैं. यह पीपीआर से बचाव का कारगर उपाय है. बकर