फौजी बना किसान, शुरू की बंजर ज़मीन में खेती किसानी, अब बंज़र ज़मीन भी उगलने लगी सोना, पढ़िए तीन भाइयों की पूरी कहानी

By Yashna Kumari

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फौजी बना किसान, शुरू की बंजर ज़मीन में खेती किसानी, अब बंज़र ज़मीन भी उगलने लगी सोना, पढ़िए तीन भाइयों की पूरी कहानी

राजस्थान भारत का एक प्रमुख कृषि प्रधान राज्य है, जहां के किसान अनेकों कठिनाइयों का सामना करते हुए भी खेती को अपनी आजीविका बनाए हुए हैं। आज हम आपको तीन ऐसे ही कृषक भाइयों की अनूठी कहानी से रूबरू कराने जा रहे हैं, जो अपनी मेहनत और संघर्ष के लिए जाने जाते हैं। यह कहानी जयपुर से 50 किलोमीटर दूर आभापुर गांव में की जाने वाली खेती की ओर ले जाती है।

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बंजर जमीन विरासत में मिली

वर्ष 1967 के दौरान भाईयों के पिता भीम सिंह को विरासत में बंजर ज़मीन मिली थी, जो उस वक्त लगभग 150 बीघा / हेक्टेयर थी। तीनों भाइयों के बीच 50-50 बीघा ज़मीन बांटी गई थी। उसी दौरान उनके बेटे हनुमान सिंह ने सैनिक की नौकरी के लिए अपना गांव छोड़ा दिया। वह एक सैनिक बनना चाहते थे, लेकिन उन्हें अपनी ज़मीन की भी चिंता थी, क्योंकि वे चाहते थे कि उनकी ज़मीन खेती के लिए उपयुक्त हो।

बंजर ज़मीन को हरा-भरा बनाना

हनुमान सिंह ने एक बड़ा फैसला लिया और उन्होंने सेना में शामिल होने के बजाय किसान बनने का फैसला किया। उन्होंने सेना के पद को अस्वीकार कर दिया और अपने गांव लौटने का फैसला किया। शुरूआत में, उनकी ज़मीन खेती के लिए उपयुक्त नहीं थी, और उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उस समय तक तकनीकी उपकरणों की कमी थी और सुविधाएं भी ज्यादा नहीं थीं। उनके साथ उनके गांव में कई अन्य किसान भी थे जिनकी ज़मीन बंजर थी, और आज भी उसी स्थिति में हैं।

सैनिक की नौकरी छोड़ने के बाद, उन्होंने बंजर ज़मीन में खेती शुरू की, अब बंजर ज़मीन हरियाली से ढकी हुई है, आइए पढ़ते हैं तीन भाइयों की यह कहानी…

तीनों भाइयों ने अपनी ज़मीन बेचकर शहर जाने या खेती छोड़कर पलायन न करने का फैसला किया। उन्होंने बैलों और हल का उपयोग करके अपनी ज़मीन को खेती के लिए उपयुक्त बनाना शुरू किया और वर्षों के संघर्ष के बाद, उन्होंने 2 बीघा ज़मीन को ठीक कर लिया। धीरे-धीरे, उन्होंने अपनी खेती की क्षमता बढ़ाई और विभिन्न फसलों की उन्नत खेती शुरू की।

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फसलों को बहुत हुआ नुकसान

पानी की कमी और आनुपातिक वर्षा के कारण कभी-कभी फसलों को नुकसान पहुंचा, लेकिन इन किसानों ने कभी हिम्मत नहीं हारी और बंजर ज़मीन पर खेती करते रहे। उन्होंने कुछ जगहों पर कुएं बनाकर पानी का भंडारण किया और खेती शुरू की। समय के साथ, उनकी कड़ी मेहनत और संघर्ष ने फल देना शुरू कर दिया। आज उनकी ज़मीन में गेहूं, जौ, चना, बाजरा, लोबिया, तिल, मूंगफली, मक्का, सौंफ और अन्य बागवानी फसलें उगती हैं।

तीनों भाइयों ने अपनी मेहनत और संघर्ष से बड़ी सफलता हासिल की है। उनकी ज़मीन अब खेती के लिए उपजाऊ बन गई है और वे अपने परिवार को आर्थिक रूप से सुरक्षित रखने में सक्षम हैं। उन्होंने देश के लिए स्वदेशी खेती का एक उदाहरण स्थापित किया है और उनकी कड़ी मेहनत और अद्यतन तकनीक ने उन्हें सशक्त बनाने में मदद की है। वे राजस्थान के गौरव हैं और अन्नदाता के रूप में पहचाने जाते हैं।

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