पालन से 9 महीने में देने लगती है अंडे इस नस्ल की तमचुर इतनी कमाई की पैसा गिनते थक जाओगे जाने इस नस्ल के बारे में

By Karan Sharma

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पालन से 9 महीने में देने लगती है अंडे इस नस्ल की तमचुर इतनी कमाई की पैसा गिनते थक जाओगे जाने इस नस्ल के बारे में

भारत एक कृषि प्रधान देश है. यहां खेती के साथ-साथ पशुपालन भी किया जाता है. बड़े किसान जहां गाय और भैंस पालते हैं, वहीं छोटे और सीमांत किसान मुर्गीपालन करके अतिरिक्त आमदनी कमाते हैं. अब तो पढ़े-लिखे युवा भी बड़े पैमाने पर मुर्गीपालन कर रहे हैं और सालाना लाखों रुपये कमा रहे हैं. हालांकि, मुर्गीपालन में कई बार घाटा भी उठाना पड़ता है. लेकिन आज हम आपको एक ऐसी मुर्गी की नस्ल के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे पालकर आपकी आमदनी दोगुनी हो जाएगी. ऐसा इसलिए क्योंकि यह मुर्गी देसी मुर्गियों के मुकाबले दुगने से भी ज्यादा अंडे देती है. साथ ही यह केवल 40 हफ्ते बाद ही अंडे देना शुरू कर देती है.

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झारखंड की देसी नस्ल – झारसीम

यह खास मुर्गी जिसके बारे में हम बात कर रहे हैं, उसका नाम ‘झारसीम’ है. स्थानीय भाषा में इसे झारसीम चिकन भी कहते हैं. इसकी खासियत यह है कि जहां देसी मुर्गियां साल में 60 अंडे देती हैं, वहीं यह मुर्गी 150 अंडे देती है. खास बात यह है कि बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (BAU) ने देसी मुर्गे और मुर्गी की एक नई प्रजाति ‘झारसीम’ विकसित की है. झारसीम मुर्गियां सामान्य देसी मुर्गियों की तुलना में चार गुना तेजी से बढ़ती हैं. साल भर में यह देसी मुर्गियों के मुकाबले ढाई गुना से भी ज्यादा अंडे देती हैं.

अंडों का वजन और प्रोटीन की मात्रा ज्यादा

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, झारसीम मुर्गी के अंडों का वजन सामान्य देसी मुर्गी के अंडों से लगभग दोगुना होता है. यानी इसके अंडे आकार में भी बड़े होते हैं. यही कारण है कि इसके एक अंडे का वजन 50 से 55 ग्राम होता है, जबकि देसी मुर्गियों के अंडों का वजन औसतन केवल 30 ग्राम होता है. सबसे बड़ी बात यह है कि किसान अंडे बेचने के साथ-साथ इसके मांस से भी अच्छी कमाई कर सकते हैं. मुर्गे की इस प्रजाति का वजन सिर्फ तीन महीने में ही डेढ़ किलो तक पहुंच जाता है.

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झारसीम मुर्गियों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि ये आकर्षक और बहुरंगी होती हैं. इनका जीवनकाल भी लंबा होता है. इन्हें कम दाना खिलाने की जरूरत होती है. इसके अंडों में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है. साथ ही इनका मांस उत्पादन भी ज्यादा होता है. ब्रॉयलर और सामान्य देसी मुर्गियों के मुकाबले झारसीम मुर्गी ग्रामीण वातावरण में आसानी से जीवित रह सकती हैं. ऐसे में अगर किसान झारसीम नस्ल की मुर्गियां पालते हैं तो उन्हें अच्छी आमदनी होगी.

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