साल के 300 दिन देती है दूध इस नस्ल की गाय छोटा-मोटा खर्चा और 1 साल की कमाई में बना देगी सेठ धनीराम

By Karan Sharma

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साल के 300 दिन देती है दूध इस नस्ल की गाय छोटा-मोटा खर्चा और 1 साल की कमाई में बना देगी सेठ धनीराम

ग्रामीण भारत में आज भी खेती के बाद पशुपालन सबसे बड़ी और बेहतरीन आमदनी का जरिया माना जाता है. आर्थिक रूप से मजबूत होने के लिए किसान खेती के साथ-साथ पशुपालन का भी सहारा लेते हैं. पशुपालन में गाय पालन सबसे ज्यादा लोकप्रिय है. गाय न सिर्फ दूध देती है बल्कि गोबर खाद के रूप में खेती के लिए भी बहुत फायदेमंद है, जिससे खेती का खर्च भी कम हो जाता है. इसीलिए हर वर्ग के किसान गाय पालन की तरफ रुख कर रहे हैं.

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लाल कंधारी गाय – छोटे किसानों के लिए वरदान

अगर आप भी गाय पालने की सोच रहे हैं, तो लाल कंधारी गाय का चुनाव कर सकते हैं. लाल कंधारी गाय छोटे किसानों के लिए काफी फायदेमंद है, क्योंकि इसे पालने में ज्यादा खर्च नहीं आता और इसे हरे चारे की ही जरूरत नहीं पड़ती. माना जाता है कि इस नस्ल की गाय को चौथी शताब्दी में कंधार के राजाओं द्वारा विकसित किया गया था. इसे लखलबुंदा के नाम से भी जाना जाता है. दूध देने की क्षमता की बात करें तो लाल कंधारी गाय रोजाना 4 से 5 लीटर दूध दे सकती है. खास बात ये है कि ये गाय साल में 275 दिन लगातार दूध देती है.

लाल कंधारी गाय की उत्पत्ति और शारीरिक बनावट

इस गाय की असली जगह महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले की कंधार तहसील है. इसे ‘लखलबुंदा’ के नाम से भी जाना जाता है. ये महाराष्ट्र के नांदेड़, परभणी, अहमदनगर, बीड और लातूर जिलों में पाई जाती है. इस नस्ल के जानवर मध्यम आकार के और गहरे लाल रंग के होते हैं. हल्के लाल से लेकर भूरे रंग की गायें भी इस नस्ल में देखने को मिलती हैं. इसके सींग टेढ़े होते हैं, माथा चौड़ा होता है, कान लंबे होते हैं, कूबड़ और लटकती त्वचा मुलायम होती है, आंखें चमकदार होती हैं और पीठ पर गोल काले धब्बे होते हैं. इस नस्ल के नर की औसतन ऊंचाई 1138 सेंटीमीटर और मादा की औसतन ऊंचाई 128 सेंटीमीटर होती है. ये नस्ल एक लैक्टेशन में औसतन 600 से 650 किलो दूध देती है, जिसमें वसा की मात्रा करीब 4.5 प्रतिशत होती है. इस नस्ल की मादा की पहली बार बच्चा देने की उम्र 30-45 महीने होनी चाहिए और इसका एक ब्याना 12-24 महीने का होता है.

लाल कंधारी गाय का चारा प्रबंधन

इस नस्ल की गायों को उनकी जरूरत के हिसाब से ही चारा खिलाएं. फलियां वाला चारा खिलाने से पहले उसमें पुआल या अन्य चारा मिला दें. ताकि पेट फूलने या अपच की समस्या न हो. जरूरत के हिसाब से चारा प्रबंधन का विवरण नीचे दिया गया है.

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  • हरा चारा – बरसीम (पहली, दूसरी, तीसरी और चौथी कटाई), Lucerne (औसत), लोबिया (लंबी और छोटी किस्म), गवार, सेनजी, ज्वार (छोटा, पकने वाला, पका हुआ), मक्का (छोटा और पकने वाला), जई, बाजरा, हाथी घास, नेपियर बाजरा, सुडान घास आदि.
  • सूखा चारा – बरसीम घास, Lucerne घास, जई की घास, पुआल, मक्का की टहनियां, ज्वार और बाजरा की भूसी, गन्ने की खोई, दूब घास, मक्के का अचार, जई का अचार आदि.

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