आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति प्राचीन काल से चली आ रही है. आयुर्वेदिक दवाओं में कई बीमारियों का रामबाण इलाज मौजूद है. आज भी न सिर्फ देश में बल्कि छत्तीसगढ़ में भी आयुर्वेदिक दवाओं से इलाज किया जाता है. आज हम आपको आयुर्वेदिक गुणों से भरपूर एक ऐसे औषधीय पौधे के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका इस्तेमाल ज्यादातर बुखार के लिए किया जाता है. आयुर्वेद में इसे खासकर टाइफाइड बुखार जैसी बीमारियों के लिए रामबाण बताया गया है.
लताकरंज का पौधा औषधीय गुणों का खजाना है. लताकरंज एक आयुर्वेदिक बेल है. इस बेल में काफी कांटे होते हैं. इसकी पत्तियां, फल, शाखाएं सभी में कांटे होते हैं. इसलिए इसके पत्तों को बहुत सावधानी से काटना पड़ता है. इसकी लताएं लगभग 20 मीटर तक लंबी होती हैं. इस पेड़ की खास बात यह है कि यह नदी, नालों, तालाबों आदि जगहों में आसानी से मिल जाती है. छत्तीसगढ़ के गांवों की तुलना में शहरों में यह ज्यादा पाया जाता है. इसके फल पर भी कई कांटे होते हैं.
डॉक्टर की सलाह से करें सेवन
डॉ. राजेश सिंह, रायपुर के सरकारी आयुर्वेदिक कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर ने बताया कि लताकरंज को छत्तीसगढ़ी में गतारन कहा जाता है. वैसे तो लताकरंज का इस्तेमाल किसी भी तरह के बुखार में किया जाता है, लेकिन अगर किसी को टाइफाइड हुआ है, तो लताकरंज की पत्तियों को लेकर पीस लें और उसका चूर्ण बना लें. इस चूर्ण को गुनगुने पानी के साथ दिन में तीन बार 10-10 ग्राम की मात्रा में लेने से टाइफाइड की बीमारी में आराम मिलता है. अगर इसे लगातार 6-7 दिनों तक इस्तेमाल किया जाए तो टाइफाइड पूरी तरह से ठीक हो जाता है. आयुर्वेद में इसे टाइफाइड रोग के लिए बेहतरीन औषधि बताया गया है. इसका इस्तेमाल अन्य तरह के बुखारों में भी राहत दिलाता है.
ध्यान दें: यह जानकारी किसी इलाज का विकल्प नहीं है. किसी भी तरह की बीमारी होने पर डॉक्टर की सलाह जरूर लें.
आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति प्राचीन काल से चली आ रही है. आयुर्वेदिक दवाओं में कई बीमारियों का रामबाण इलाज मौजूद है. आज भी न सिर्फ देश में बल्कि छत्तीसगढ़ में भी आयुर्वेदिक दवाओं से इलाज किया जाता है. आज हम आपको आयुर्वेदिक गुणों से भरपूर एक ऐसे औषधीय पौधे के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका इस्तेमाल ज्यादातर बुखार के लिए किया जाता है. आयुर्वेद में इसे खासकर टाइफाइड बुखार जैसी बीमारियों के लिए रामबाण बताया गया है.
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लताकरंज का पौधा औषधीय गुणों का खजाना है. लताकरंज एक आयुर्वेदिक बेल है. इस बेल में काफी कांटे होते हैं. इसकी पत्तियां, फल, शाखाएं सभी में कांटे होते हैं. इसलिए इसके पत्तों को बहुत सावधानी से काटना पड़ता है. इसकी लताएं लगभग 20 मीटर तक लंबी होती हैं. इस पेड़ की खास बात यह है कि यह नदी, नालों, तालाबों आदि जगहों में आसानी से मिल जाती है. छत्तीसगढ़ के गांवों की तुलना में शहरों में यह ज्यादा पाया जाता है. इसके फल पर भी कई कांटे होते हैं.
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डॉक्टर की सलाह से करें सेवन
डॉ. राजेश सिंह, रायपुर के सरकारी आयुर्वेदिक कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर ने बताया कि लताकरंज को छत्तीसगढ़ी में गतारन कहा जाता है. वैसे तो लताकरंज का इस्तेमाल किसी भी तरह के बुखार में किया जाता है, लेकिन अगर किसी को टाइफाइड हुआ है, तो लताकरंज की पत्तियों को लेकर पीस लें और उसका चूर्ण बना लें. इस चूर्ण को गुनगुने पानी के साथ दिन में तीन बार 10-10 ग्राम की मात्रा में लेने से टाइफाइड की बीमारी में आराम मिलता है. अगर इसे लगातार 6-7 दिनों तक इस्तेमाल किया जाए तो टाइफाइड पूरी तरह से ठीक हो जाता है. आयुर्वेद में इसे टाइफाइड रोग के लिए बेहतरीन औषधि बताया गया है. इसका इस्तेमाल अन्य तरह के बुखारों में भी राहत दिलाता है.
ध्यान दें: यह जानकारी किसी इलाज का विकल्प नहीं है. किसी भी तरह की बीमारी होने पर डॉक्टर की सलाह जरूर लें.