पशुपालकों के लिए मानसून से पहले के कुछ महीने काफी अहम होते हैं। अगर आप इन महीनों में कुछ जरूरी सावधानी बरतते हैं, तो इससे आपके पशु स्वस्थ रहेंगे और दूध उत्पादन भी अच्छा होगा। वहीं जरा सी लापरवाही आपको 35 से 50 हज़ार रुपये का नुकसान भी करवा सकती है। पशुपालन विभाग के विशेषज्ञों का कहना है कि पशुओं को साल में दो बार कृमिनाशक दवा जरूर देनी चाहिए।
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मानसून में पेट के कीड़े बढ़ा देते हैं परेशानी
कृषि विज्ञान केंद्र नियमतपुर के पशुपालन विभाग के विशेषज्ञ डॉ. शिवकुमार यादव बताते हैं कि मानसून के दिनों में पशुओं में पेट के कीड़े तेजी से बढ़ते हैं। इन कीड़ों की वजह से पशु कमज़ोर होने लगता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कुछ कृमि खून चूसने वाले होते हैं। ये खून चूसकर पशु को कमज़ोर बना देते हैं। इसका सीधा असर दूध उत्पादन पर पड़ता है।
गर्भधारण क्षमता पर भी असर
डॉ. शिवकुमार का कहना है कि खून चूसने की वजह से पशु को अतिरिक्त ऊर्जा नहीं मिल पाती। इससे पशु में हीट नहीं आता और प्रजनन नहीं हो पाता। अगर पशु गर्भधारण नहीं करता है, तो किसानों को 35 से 50 हज़ार रुपये का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है।
साल में दो बार दवा जरूरी
पशुओं को साल में दो बार कृमिनाशक दवा देना बहुत ज़रूरी है। डॉ. शिवकुमार कहते हैं कि मानसून शुरू होने से पहले पशुओं को दवा दें। इसके बाद मानसून खत्म होते ही एक बार फिर से दवा दें। इससे साल भर पशु के पेट में कीड़े नहीं पनप पाएंगे और पशु स्वस्थ रहेगा। इससे दूध उत्पादन में भी सुधार होगा।
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गर्भावस्था में ना दें दवा
डॉ. शिवकुमार ये भी सलाह देते हैं कि गर्भावस्था के दौरान पशु को बिलकुल भी कृमिनाशक दवा ना दें। ऐसा करने से गर्भपात हो सकता है। उनका कहना है कि बच्चे को जन्म देने के 15 से 18 दिन बाद माँ और बच्चे दोनों को दवा दें। इससे दूध उत्पादन बढ़ेगा। डॉ. शिवकुमार यादव ने बताया कि आप अपने पशु को इवरमेक्टिन या फेनबेंडाजोल नाम की कृमिनाशक दवा दे सकते हैं। ये दवाएं उनके पेट के सभी कीड़ों को मार देंगी। ये दवाएं आपको मार्केट में 80 से 100 रुपये के आसपास मिल जाएंगी।